राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी उषा आध्यात्मिक जगत का एक ऐसा नाम है, जो रामायण, श्रीमदभागवत गीता,बाइबिल, कुरान ,गुरुग्रंथ साहिब के अध्ययन वेत्ताओं में सबसे पहले आता है।प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका बीके उषा की आध्यात्मिक कक्षाओं में शामिल होने के लिए जिज्ञासु लालायित रहते है।प्राय: डेढ़ घण्टे का जब उनका व्याख्यान होता है तो सभी शांतचित्त होकर न सिर्फ सुनते है,बल्कि आत्मसात भी करते है।ब्रह्माकुमारीज मुख्यालय माउंट आबू में हाल ही में हुए अखिल भारतीय संत सम्मेलन में देशभर से आए विभिन्न मठो,अखाड़ो,आश्रमो के संत राजयोगिनी उषा के परमात्मा विषयक यथार्थवादी तर्कसंगत उदबोधन को सुनकर उनके सामने नतमस्तक हो गए,यही सम्मेलन की सफलता भी कही जा सकती है।राजयोगिनी उषा जिन्हें ब्रह्माकुमारीज संस्था से जुड़ी विदुषी मां के माध्यम से बचपन मे ही स्वयं का व परमात्मा का ज्ञान हो गया था,ने अपने राजयोग अभ्यास द्वारा ईश्वरीय याद में रहकर प्रसिद्धि की ऊंचाइयों को छुआ।बिहार विधानसभा में उनके द्वारा कराए गए राजयोग से विधानसभा अध्यक्ष व सभी विधायक इतने प्रभावित हुए की,उन्होंने माउंट आबू जाकर आवासीय राजयोग प्रशिक्षण प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की,साथ ही बीके उषा का सम्मान भी किया।
ब्रह्माकुमारी उषा द्वारा पिछले कई दशकों से हिंदी भाषा को आधार बनाकर दिए जा रहे रूहानी व आध्यात्मिक ज्ञान के साथ ही उनके द्वारा ‘अध्यात्म की ओर …’व ‘स्वप्रबधन ‘पुस्तक लेखन तथा उनके द्वारा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर की जा रही हिंदी सेवा के तहत ब्रह्माकुमारी उषा को विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ भागलपुर(बिहार) ने विद्या वाचस्पति मानद सम्मान से विभूषित किया है।इस सम्मान प्राप्ति के अवसर पर उपस्थित रहे ब्रह्माकुमारीज संस्था के अतिरिक्त महासचिव बीके ब्रजमोहन भाई,कार्यकारी सचिव बीके मृतुन्जय भाई व धर्म प्रभाग प्रमुख बीके मनोरमा ने बीके उषा को इस सम्मान के योग्य बताया और कहा कि इससे उन्हें जीवन मे एक नए सुख की अनुभूति होगी,जो ईश्वरीय सेवा के लिए कारगर सिद्ध होगी।ब्रह्माकुमारी उषा यूं तो दक्षिण अफ्रीका में जन्मी है और वही उन्हें ब्रह्माकुमारीज के माध्यम से ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हुआ।लेकिन ईश्वरीय सेवा में समर्पित होने के लिए उन्हें मां ने ही प्रेरित किया।दक्षिण अफ्रीका में पिताजी के डियूटी पर चले जाने पर घर मे अकेली मां श्रीमदभागवत गीता पद्धति रहती थी,जिसका लाभ उषा को अभिमन्यु की तरह हुआ और उनमें सुसंस्कार समाहित हो गए।
जिस समय उषा का परिवार भारत वापिस आया,उस समय उषा की आयु मात्र 12 वर्ष की थी,फिर पढ़ाई के लिए हॉस्टल भी रही।लेकिन ईश्वरीय संस्कार उनके साथ साथ चलते रहे। मां जहां उनकी पथप्रदर्शक है वही परमात्मा उन्हें अपनी सेवाओं के लिए उंगली पकड़ कर चलाते है।तभी तो वे आज ब्रह्माकुमारीज का चेहरा बनकर देश विदेश की अध्यात्म सेवा कर पा रही है।बीके उषा कहती है कि उन्हें आज तक जो भी सम्मान व उपलब्धि प्राप्त हुई है उन सबका श्रेय परमात्मा शिव को ही जाता है।वे तो निमित्त मात्र रूप में जो जो भी परमात्मा शिव कराते है,वही करती जाती हूं।यही उनका सौभाग्य है।