Thursday, June 8, 2023
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140 करोड़ को खिलाएंगे क्या?

हरिशंकर व्यास
सोचें, तकनीकी रूप से दुनिया के दो सर्वाधिक विकसित देश और एक दुनिया के सबसे अमीर देश के समूह में भारत शामिल हुआ और उसकी पहली बैठक हुई तो क्या फैसला हुआ? आई2यू2 यानी इंडिया व इजराइल और यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका व यूनाइटेड अरब अमीरात की पहली वर्चुअल बैठक हुआ तो ऐलान हुआ है कि यूएई भारत में फूड पार्क बनाने में 16 हजार करोड़ रुपए का निवेश करेगा। निवेश का पहला फैसला फूड पार्क है और बताया गया है कि इसका मकसद दक्षिण एशिया में भुखमरी और कुपोषण पर काबू पाना है और साथ ही पर्यावरण की रक्षा भी करनी है। जाहिर है कि दक्षिण एशिया में भुखमरी और कुपोषण अफ्रीकी देशों के जैसी हो गई है और जलवायु परिवर्तन चाहे जिसकी वजह से हो रहा है, उसका सबसे बड़ा शिकार दक्षिण एशिया के देश हो रहे हैं।

बताने की जरूरत नहीं है कि दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश भारत है और अगले साल यह दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश होने जा रहा है। भारत की आबादी 140 करोड़ से ज्यादा हो गई है और इतनी बड़ी आबादी के लिए भोजन का प्रबंध आने वाले दिनों में मुश्किल होने वाला है। अनाज संकट का कोई एक कारण नहीं है, बल्कि कई कारण हैं। इसमें जलवायु परिवर्तन एक कारण है तो सरकारी नीतियां भी कारण हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण किसान मौसम की मार झेल रहे हैं। पहले भी भारत का किसान मॉनसून की बारिश के सहारे ही खेती करता था और आज भी कर रहा है। आज भी भारत में खेती योग्य जमीन का सिर्फ 49 फीसदी हिस्से में सिंचाई की व्यवस्था है, वह भी जैसे-तैसे। बाकी 51 फीसदी जमीन पर खेती अब भी दक्षिण पश्चिमी मॉनसून की बारिश से होती है। इस साल मॉनसून की बारिश उत्तर प्रदेश और बिहार में नहीं हो रही है तो धान की रोपाई रूकी हुई है। थोड़े से किसानों ने धान रोप दी है तो बारिश की कमी से उनके खेत जल रहे हैं और जिन्होंने अभी तक धान नहीं रोपे हैं वे हैरान परेशान हैं अब कब रोपेंगे। इस बीच किसान संगठनों ने अभी से दोनों राज्यों में सूखे की घोषणा करने की मांग शुरू कर दी है। सोचें, देश के दो बड़े राज्यों में अगर धान की पर्याप्त खेती नहीं होती है तो उन्हें कहां से खिलाया जाएगा?

ऐसा नहीं है कि जिन राज्यों में बारिश हो रही वहां धान या खरीफ की दूसरी फसलों के लिए बहुत अच्छे हालात हैं। वहां की फसल भारी बारिश में बह रही है। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना आदि राज्यों में अनुमान से कई गुना ज्यादा बारिश हो रही है। यह अतिरेक जलवायु परिवर्तन के कारण है। जहां अभी बारिश नहीं हो रही है, जैसे बिहार में वहां अगर किसी तरह से किसान फसल रोप लेते हैं तो अगस्त और सितंबर में नेपाल की ओर से जब पानी छोड़ा जाएगा तो बाढ़ आएगी और फसल बह जाएगी। यहीं हाल पूर्वी उत्तर प्रदेश का भी होगा। यानी किसानों की पूरी खेती भगवान भरोसे या ऐसी शक्तियों के भरोसे है, जिन पर उनका जोर नहीं चलता है। ऐन खेती के समय खाद और बीज की कमी या कालाबाजारी अलग संकट है, जिसका सामना किसान को करना होता है। इसके अलावा जिन इलाकों को सिंचित माना जा रहा है वहां भी पानी का संकट है। पंजाब और हरियाणा में सिंचाई की व्यवस्था हुई है लेकिन ट्यूबवेल के इस्तेमाल से भूमिगत जल का स्तर बहुत नीचे चला गया है। इसलिए सिंचित इलाकों में भी सिंचाई आसान नहीं है।

इसके बाद संकट सरकारी खरीद और निर्यात की नीतियों का है। भारत में गेहूं की खरीद कम हुई और लगा की आगे इसका संकट हो सकता है तो भारत ने गेहूं का निर्यात रोक दिया। लेकिन यह हर समय नहीं हो सकता है। भारत ने इस साल 187 लाख टन गेहूं खरीदा है, जो पिछले साल के मुकाबले 53 फीसदी कम है। यानी पिछली बार सरकार ने जितना गेहूं खरीदा था उसके आधे से कम गेहूं इस साल खरीदा है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि निजी कारोबारियों ने बहुत आक्रामक खरीद की और निर्यात किया। रूस और यूक्रेन की जंग के बीच दुनिया के हालात ऐसे बने हैं कि भारत से गेहूं की मांग बहुत बढ़ी थी। ऐसी अंतरराष्ट्रीय स्थितियां बनी रहनी हैं और इसलिए सरकारी खरीद की व्यवस्था चलती रहने के बावजूद निजी खरीद बढ़ेगी। सरकार इस साल कम गेहूं खरीद पाई तो कहा गया कि बिहार, बंगाल और कई राज्यों में अब गेहूं के बदले चावल दिया जाएगा। अब सोचें, अगर अगले चुनाव के बाद या पहले ही सरकार 80 करोड़ लोगों को पांच किलो अनाज देना बंद कर दे तो क्या होगा? अनाज का पूरा बाजार निजी कारोबारियों के हाथ में हो और सरकार दो-तिहाई आबादी को मुफ्त राशन न दे तो 140 करोड़ लोगों के बीच कैसा हाहाकार मचेगा, उसकी कल्पना की जा सकती है।

इसी बीच आयातित तेल पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार इथेनॉल की मिक्सिंग पर बहुत जोर दे रही है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने बहुत गर्व से ऐलान किया कि 10 फीसदी इथेनॉल मिक्सिंग का लक्ष्य भारत ने समय से पहले हासिल कर लिया है। ध्यान रहे इथेनॉल का उत्पादन भारत के लिए बड़े अनाज संकट का कारण बन सकता है। अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कई देश इस संकट से गुजर रहे हैं। अनाज या खाने-पीने की दूसरी चीजों से इथेनॉल की उत्पादन बढ़ता है तो खाद्यान्न संकट गहराएगा। सरकार को इसका ध्यान रखते हुए नीतियां बनानी होंगी।

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