हरिशंकर व्यास
अभी सरकार ने अनब्रांडेड डिब्बाबंद खाने-पीने की चीजों पर भी पांच फीसदी जीएसटी लगा दिया है। चंडीगढ़ में हुई जीएसटी कौंसिल की पिछली बैठक में कौंसिल ने दूध, दही, पनीर, सूखा मखाना, शहद, सोयाबीन, मटर, चावल, गेहूं, गेहूं का आटा, गुड़ आदि सभी चीजों पर पांच फीसदी जीएसटी लगाने का फैसला किया। सोचें, जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने से पहले तक आजादी के बाद कभी भी खाने-पीने की चीजों पर टैक्स नहीं लगा था। जीएसटी लागू होने के बाद खाने-पीने की चीजों पर टैक्स लगाया गया तो वह ब्रांडेंड और महंगी चीजों तक सीमित था। लेकिन अब बुनियादी जरूरत की हर चीज पर टैक्स लग गया। इससे हर चीज की कीमत बढ़ेगी। छोटे कारोबारियों के संगठन ने इसका विरोध किया है। उनका कहना है कि खुदरा कारोबार करने वाली बड़ी कंपनियों को इसका फायदा होगा। किसी ने नाम नहीं लिया लेकिन कहने की जरूरत नहीं है कि अडानी, रिलायंस, टाटा जैसी बड़ी कंपनियां जो खाने-पीने की चीजें बना रही हैं या रिटेल कारोबार में उतरी हैं इसका सीधा फायदा उन कंपनियों को होगा।
खुदरा कारोबारियों के संगठनों ने बताया है कि बड़ी रिटेल कंपनियां देश की सिर्फ 15 फीसदी आबादी की जरूरतें पूरी करती हैं। बाकी 85 फीसदी आबादी छोटे खुदरा कारोबारियों की दुकानों में बिकने वाली पैकेज्ड लेकिन अनब्रांडेड वस्तुएं खरीदती है। खाने-पीने की चीजों को पांच फीसदी टैक्स के दायरे में लाने पर यह बड़ी आबादी प्रभावित होगी। सोचें, देश की 85 फीसदी आबादी के लिए खाने-पीने की चीजें महंगी हो रही हैं लेकिन किसी को इसकी परवाह नहीं है।
इसी तरह सरकार ने अस्पताल में पांच हजार रुपए से ज्यादा किराए वाले कमरों को जीएसटी के दायरे में ला दिया और होटलों में एक हजार रुपए प्रति दिन किराए वाले कमरे भी जीएसटी के दायरे में आ गए। चेक जारी करने पर बैंक जो शुल्क लेते हैं उनके ऊपर 18 फीसदी जीएसटी लगाया गया है तो बैंकों में न्यूनतम बैलेंस नहीं रखने की वजह से लगाए जाने वाले जुर्माने पर भी जीएसटी लगाया गया है। रेलवे टिकट पर भी सरकार जीएसटी वसूल रही है तो घर पर खाने-पीने की वस्तुएं डिलीवर करने वाली ऐप आधारित कंपनियों की सेवाएं भी टैक्स के दायरे में आ गई हैं। जीएसटी कौंसिल में टैक्स स्लैब बदलने पर चर्चा हो रही है, जिसमें पांच फीसदी वाले स्लैब को हटा कर सीधे आठ फीसदी किया जा सकता है। इससे महंगाई और बढ़ेगी।